बीमारी है दिन में नींद आना
नींद ईश्वर द्वारा मनुष्य को प्रदत्त ऐसा उपहार है जिसकी तुलना सिर्फ जीवन से की जा सकती है। नींद है तो जाग्रत अवस्था का महत्व है और परम आनंद की कल्पना है। स्वस्थ जीवन और स्वस्थ शरीर के लिए गहरी और बिना किसी अवरोध की नींद जरूरी है। मगर नींद का अपना समय होता है। रात का समय नींद के लिए निर्धारित है। दूसरी ओर कई लोगों को दिन में भी खूब नींद आती है। हालांकि दिन में नींद लेना बीमारी की श्रेणी में आता है। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार दिन में नींद आने की समस्या तीन प्रकार की होती है:
- नारकोलेप्सी – व्यक्ति दिन में नींद की तीव्र इच्छा महसूस करता है
- ओ.एस.ए - व्यक्ति नींद में खर्राटे लेता है या बीच बीच में श्वसन क्रिया में रुकावट आती है
- हाइपरसोम्निया – इससे प्रभावित व्यक्ति रात में और दिन में बहुत अधिक सोता रहता है।
इस आलेख में हम नारकोलेप्सी की चर्चा करेंगे:
नारकोलेप्सी एक गंभीर समस्या है जो सामान्यत: 25 वर्ष की उम्र के आसपास के लोगों को प्रभावित करती है और इसके बाद सारी उम्र व्यक्ति इस रोग से प्रभावित रहता है।
नारकोलेप्सी पुरुष और महिला दोनों को बराबर रूप से प्रभावित करती है। प्रभावित व्यक्ति दिन के समय नींद के झोंकों को रोक नहीं पाता और दिन के समय सोता रहता है। नींद के साथ-साथ प्रभावित व्यक्ति की मांसपेशियों में कमजोरी, निद्रा में किसी विशेष अंग का फालिज सरीखा लक्षण और विशेष प्रकार के विचारों से प्रभावित होता देखा गया है। नींद के दौरे कुछ क्षण अर्थात सेकेंड से आधे घंटे तक रहते हैं। नींद के झोंके में शिथिल कार्यशैली, जैसे कि गाड़ी चलाना, लेक्चर सुनते-सुनते और यहां तक कि खाना खाते समय भी व्यक्ति इन दौरों का शिकार हो जाता है। दिन में निद्रित होना नारकोलेप्सी का प्रारंभिक लक्षण होता है।
चौथाई मरीजों में क्षणिक लेकिन आकस्मिक मांसपेशी का नियंत्रण खोना (बिना बेहोशी के) देखा गया है। मांसपेशियों का नियंत्रण खोना, खासकर घुटनों का आपस में टकराना या जबड़े का एक तरफ झुकना इसका लक्षण होता है। इस तरह के दौरों का होना, मानसिक उत्तेजना से प्रेरित होता है। डर, आश्चर्यचकित या आकषिर्त लक्ष्य या गुस्सा भी उन लक्षणों को प्रेरित करते हैं।
सोते-सोते शरीर के किसी एक भाग में फालिज सरीखी कमजोरी का होना या डरावने दृश्यों का दिखना भी इस रोग का एक अभिन्न भाग है। ये घटनाएं एक मिनट से भी कम कम की होती हैं और नींद एवं कमजोरी के बीच में घट जाती हैं। नींद में प्रभावित व्यक्ति को क्षणिक फालिज सरीखा अनुभव होता है। इस स्थिति में प्रभावित अंग को घुमाया-फिराया नहीं जा सकता, जबकि श्वसन क्रिया सामान्य रहती है।
इस रोग से पीड़ित करीब पचास-पचास प्रतिशत मरीज रात की नींद में बाधा की शिकायत करते हैं। यही कारण है कि दिन में सोने की चेष्टा करते हैं। सोते समय अजीब दृश्यों का दिखना, अजीब-अजीब आवाजों का सुनाई देना भी इस बीमारी का सामान्य लक्षण है।
10-15 प्रतिशत जनमानस में प्रथम श्रेणी के रिश्तेदार इस रोग से प्रभावित होते हैं। नारकोलेप्सी से पीड़ित मां-बाप यह रोग अपनी संतान को देते हैं। इससे ये प्रमाणित होता है कि यह वंशानुगत रोग है। नारकोलेप्सी से प्रभावित व्यक्तियों में मानसिक तनाव इस रोग को उभारने में सहायक होता है। इस रोग के मरीजों का नींद चक्र सामान्य न रहकर कई परिवर्तनों का शिकार हो जाता है।
इस अवस्था की मख्य पहचान दिन में निद्रित होने के साथ-साथ मांसपेशियों में कमजोरी का होना प्रमुख है। दिन में नींद प्रक्रिया रिकार्डिंग दरशाना, थोड़े समय का नींद का पैटर्न दिखना या 10 बजे से 6 बजे के बीच में कम से कम दो क्षणिक आर.ई.एम. रिकार्डिंग, विश्वस्त रूप से इस रोग का होना साबित कर देते हैं।
(ये आलेख प्रो (डॉ.) एम.पी. श्रीवास्तव और संजय श्रीवास्तव द्वारा लिखित पुस्तक निद्रा रोग: कारण और निवारण से साभार लिया गया है। ये पुस्तक प्रभात प्रकाशन ने प्रकाशित की है।)
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